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Channel: शाश्वत शिल्प
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सूर्य के टुकड़े

छंदों के तेवर बिगड़े हैं,गीत-ग़ज़ल में भी झगड़े हैं।राजनीति हो या मज़हब हो,झूठ के झंडे लिए खड़े हैं ।बड़े लोग हैं ठीक है लेकिन,जि़ंदा हैं तो क्यूँ अकड़े हैं। दीयों की औकात न पूछो किसी सूर्य के ये...

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उजाले का स्रोत

सदियों से‘अँधेरे’ में रहने के कारण‘वे’अँधेरी गुफाओं में रहने वाली मछलियों की तरहअपनी ‘दृष्टि’ खो चुके हैं ।उनकी देह में अँधेरे से ग्रसितमन-बुद्धि तो हैकिंतु आत्मा नहींक्योंकि आत्माअँधेरे में नहीं...

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शीत - सात छवियाँ

धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।सूरज हमने क्या किया, क्यों करता परिहास,धुआँ-धुआँ सी...

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ले जा गठरी बाँध

वक़्त घूम कर चला गया है मेरे चारों ओर,बस उन क़दमों का नक़्शा है मेरे चारों ओर ।सदियों का कोलाहल मन में गूँज रहा लेकिन,कितना सन्नाटा पसरा है मेरे चारों ओर ।तेरे पास अभाव अगर है ले जा गठरी बाँध,नभ जल...

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अब न कहना

सबने उतना पाया जिनका हिस्सा जितना, क्या मालूम,मेरे भीतर सब मेरा है या कुछ उसका, क्या मालूम ।कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक,शायद यूँ सब करते हैं पत्थर का सिजदा क्या मालूम ।जीवन के उलझे-से...

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यूँ ही

यादों के कुछ ताने-बाने और अकेलापन,यूँ ही बीत रहीं दिन-रातें और अकेलापन।ख़ुद से ख़ुद की बातें शायदख़त्म कभी न हों,कुछ कड़वी कुछ मीठी यादें और अकेलापन।जीवन डगर कठिन है कितनी समझ न पाया मैं,दिन पहाड़ खाई...

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श्वासों का अनुप्रास

   (चित्र-महेन्द्र वर्मा)सच को कारावास अभी भी,भ्रम पर है विश्वास अभी भी ।पानी  ही   पानी   दिखता  पर, मृग आँखों में प्यास अभी भी ।  मन का मनका फेर कह रहा,खड़ा कबीरा पास अभी भी ।...

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मन के नयन

मन के नयन खुले हैं जब तक,सीखोगे तुम जीना तब तक ।दीये को कुछ ऊपर रख दो,पहुँचेगा उजियारा सब तक ।शोर नहीं बस अनहद से ही,सदा पहुँच जाएगी रब तक।दिल दरिया तो छलकेगा ही,तट भावों को रोके कब तक।जान नहीं पाया...

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चींटी के पग

सहमी-सी है झील शिकारे बहुत हुए,और उधर तट पर मछुवारे बहुत हुए ।चाँद सरीखा कुछ तो टाँगो टहनी पर,जलते-बुझते जुगनू तारे बहुत हुए ।चींटी के पग नेउर को भी सुनता हूँ,,ढोल मँजीरे औ’जयकारे बहुत हुए ।आओ अब मतलब...

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उम्र का समंदर

दिन ढला तो साँझ का उजला सितारा मिल गया,रात की अब फ़िक्र किसको जब दियारामिल गया ।ज़िंदगी   की  डायरी   में    बस   लकीरें  थीं  मगर,कुछ लिखा था जिस सफ़्हे पर वो दुबारा मिल गया ।तेज़ लहरों ने गिराया फिर...

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बातों का फ़लसफ़ा

                               ज़रा-ज़रा इंसाँ होने सेमन को सुकून मिलना तय है,अगर देवता बन बैठे तो हरदम दोष निकलना तय है ।सूरज गिरा क्षितिज के नीचे   सुबह सबेरे फिर चमकेगा,चलने वालों का ही गिरना उठना फिर...

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बेवजह

 मुश्किलों को क्यों हवा दी बेवजह,इल्म की क्यों बंदगी की बेवजह ।हाथ   में   गहरी  लकीरें  दर्ज  थीं,छल किया तक़़दीर ने ही बेवजह ।सुबह ही थी शाम कैसे यक-ब-यक,वक़्त  ने   की  दुश्मनी-सी बेवजह ।वो  नहीं...

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दीये का संकल्प

तिमिर तिरोहित होगा निश्चितदीये का संकल्प अटल है।सत् के सम्मुख कब टिक पायाघोर तमस की कुत्सित चाल,ज्ञान रश्मियों से बिंध कर हीहत होता अज्ञान कराल,झंझावातों के झोंकों से लौ का ऊर्ध्वगतित्व अचल है।कितनी...

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नवगीत - संवादी सुर

कुछ दाने, कुछ मिट्टी किंचितसावन शेष रहे ।सूरज अवसादित हो बैठाऋतुओं में अनबन,नदिया पर्वत सागर रूठेपवनों में जकड़न,जो हो, बस आशा.ऊर्जा कादामन शेष रहे ।मौन हुए सब पंख पखेरूझरनों का कलकल,नीरवता को भंग कर...

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नवगीत

कुछ दाने, कुछ मिट्टी किंचितसावन शेष रहे ।सूरज अवसादित हो बैठाऋतुओं में अनबन,नदिया पर्वत सागर रूठेपवनों में जकड़न,जो हो, बस आशा.ऊर्जा कादामन शेष रहे ।मौन हुए सब पंख पखेरूझरनों का कलकल,नीरवता को भंग कर...

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गीत बसंत का

सुरभित मंद समीर ले                                                  आया है मधुमास।पुष्प रँगीले हो गएकिसलय करें किलोल,माघ करे जादूगरीअपनी गठरी खोल।गंध पचीसों तिर रहेपवन हुए उनचास ।अमराई में कूकतीकोयल...

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अपने हिस्से की बूँदें

तूफ़ाँ बनकर वक़्त उमड़ उठता है अक्सर,खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर ।उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं,मेरी  साँसों  का  हिसाब रखता है अक्सर ।वक़्त ने गहरे हर्फ़ उकेरे जिस किताब पर,उस के सफ़्हे...

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भवानी प्रसाद मिश्र, अनुपम मिश्र और बेमेतरा

स्व. भवानी प्रसाद मिश्र................एक छोटा-सा किस्सा सुनाता हूँ,  आज के माता-पिता के लिए वो ज़रा चौंकाने वाला होगा । आज हम यह देखते हैं कि बच्चे कैसे अच्छे-से पढ़ें और पढ़-लिख कर कैसे अच्छी नौकरियों...

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बरगद माँगे छाँव

सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग,बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग।भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव। सूरज बोला  सुन जरा, धरती मेरी बात,मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी...

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कुछ और

मेरा कहना था कुछ और,उसने समझा था कुछ और ।धुँधला-सा है शाम का  सफ़र,सुबह उजाला था कुछ और ।गाँव जला तो बरगद रोया,उसका दुखड़ा था कुछ और ।अजीब नीयत धूप की हुई,साथ न साया, था कुछ और ।जीवन-पोथी में लिखने...

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