$ 0 0 कुछ दाने, कुछ मिट्टी किंचितसावन शेष रहे ।सूरज अवसादित हो बैठाऋतुओं में अनबन,नदिया पर्वत सागर रूठेपवनों में जकड़न,जो हो, बस आशा.ऊर्जा कादामन शेष रहे ।मौन हुए सब पंख पखेरूझरनों का कलकल,नीरवता को भंग कर रहाकोई कोलाहल,जो हो, संवादी सुर में अबगायन शेष रहे । -महेन्द्र वर्मा