दीये का संकल्प अटल है।
सत् के सम्मुख कब टिक पाया
घोर तमस की कुत्सित चाल,
ज्ञान रश्मियों से बिंध कर ही
हत होता अज्ञान कराल,
झंझावातों के झोंकों से
कितनी विपदाओं से निखरा
दीपक बन मिट्टी का कण-कण,
महत् सृष्टि का उत्स यही है
संदर्शित करता यह क्षण-क्षण,
साँझ समर्पित कर से द्योतित
सूरज का प्रतिरूप अनल है ।
शुभकामनाएँ
-महेन्द्र वर्मा