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Channel: शाश्वत शिल्प
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बातों का फ़लसफ़ा

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ज़रा-ज़रा इंसाँ होने सेमन को सुकून मिलना तय है,
अगर देवता बन बैठे तो हरदम दोष निकलना तय है ।

सूरज गिरा क्षितिज के नीचे   सुबह सबेरे फिर चमकेगा,
चलने वालों का ही गिरना उठना फिर से चलना तय है ।

जब अतीत की गहराई से   यादों का लावा-सा निकले,
मन में जमी भावनाओं का गलना और पिघलना तय है ।

जहाँ-जहाँ  ढूँढ़ोगे   उसको   अपना   ही   साया   देखोगे,
ख़ुद से अलग समझते हो तो इस यक़ीन में छलना तय है ।

बातों का है  यही फ़़लसफ़ा  रपटीली  होती हैं   अक्सर,
समझ गए तो सँभल गए पर चूके अगर फिसलना तय है ।



                             -महेन्द्र वर्मा




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