ज़रा-ज़रा इंसाँ होने सेमन को सुकून मिलना तय है,
अगर देवता बन बैठे तो हरदम दोष निकलना तय है ।
सूरज गिरा क्षितिज के नीचे सुबह सबेरे फिर चमकेगा,
चलने वालों का ही गिरना उठना फिर से चलना तय है ।
जब अतीत की गहराई से यादों का लावा-सा निकले,
मन में जमी भावनाओं का गलना और पिघलना तय है ।
जहाँ-जहाँ ढूँढ़ोगे उसको अपना ही साया देखोगे,
ख़ुद से अलग समझते हो तो इस यक़ीन में छलना तय है ।
बातों का है यही फ़़लसफ़ा रपटीली होती हैं अक्सर,
समझ गए तो सँभल गए पर चूके अगर फिसलना तय है ।
-महेन्द्र वर्मा