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Channel: शाश्वत शिल्प
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अब न कहना

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सबने उतना पाया जिनका हिस्सा जितना, क्या मालूम,
मेरे भीतर सब मेरा है या कुछ उसका, क्या मालूम ।

कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक,
शायद यूँ सब करते हैं पत्थर का सिजदा क्या मालूम ।

जीवन के उलझे-से ताने-बाने बिखरे इधर-उधर,
बुन पाउंगा शायद चादर एक खुरदरा क्या मालूम ।

झूठ हमेशा कहने वाला बोला - मैं तो झूठा हूँ,
उसके कहने में सच कितना झूठा कितना क्या मालूम ।

दानिशमंदी की परिभाषा जाने किसने यूँ लिख दी,
साजि़श कर के अपना उल्लू सीधा करना, क्या मालूम ।

फ़सल उगा सब को जीवन दूँ, मुझ भूखे को मौत मिली,
कब देंगे वे देशभक्त का मुझको तमग़ा क्या मालूम ।

मैंने तो इंसान बना कर भेजा सब को धरती पर,
जाति-धर्म में किसने बाँटा, अब न कहना क्या मालूम ।
 

                                                                                -महेन्द्र वर्मा

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