(चित्र-महेन्द्र वर्मा)
सच को कारावास अभी भी,
भ्रम पर है विश्वास अभी भी ।
पानी ही पानी दिखता पर,
भ्रम पर है विश्वास अभी भी ।
पानी ही पानी दिखता पर,
मृग आँखों में प्यास अभी भी ।
मन का मनका फेर कह रहा,
खड़ा कबीरा पास अभी भी ।
बुद्धि विवेक ज्ञान को वे सब,
बुद्धि विवेक ज्ञान को वे सब,
देते हैं संत्रास अभी भी ।
जीवन लय को साध रहे हैं,
श्वासों का अनुप्रास अभी भी ।
जीवन लय को साध रहे हैं,
श्वासों का अनुप्रास अभी भी ।
पाने का आभास क्षणिक था,
खोने का अहसास अभी भी ।पंख हौसलों के नाकटते,
उड़ने का उल्लास अभी भी ।
-महेन्द्र वर्मा