$ 0 0 मेरा कहना था कुछ और,उसने समझा था कुछ और ।धुँधला-सा है शाम का सफ़र,सुबह उजाला था कुछ और ।गाँव जला तो बरगद रोया,उसका दुखड़ा था कुछ और ।अजीब नीयत धूप की हुई,साथ न साया, था कुछ और ।जीवन-पोथी में लिखने को,शेष रह गया था कुछ और । -महेन्द्र वर्मा