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Channel: शाश्वत शिल्प
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भारत की संत परंपरा - तब और अब

भारत सदा से संतों की भूमि रहा है । आज भी संत उपाधि धारण करने वाले अनेक हैं किंतु इनकी विशेषताएं अतीत के संतों से नितांत भिन्न परिलक्षित होती हैं । विगत आठ-नौ सौ वर्षों तक भारतीय समाज और संस्कृति को एक...

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जा जा रे अपने मंदरवा-पं. जसराज

                                                       पं. जसराज (28 जनवरी, 1930-17 अगस्त, 2020) संगीत मार्तण्ड पंडित जसराज को अपने जीवन काल में एक ऐसा सम्मान मिला जो भारतीय संगीत के किसी भी साधक को...

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तेरह महीने का वर्ष

कुँवार या आश्विन का महीना शुरू हो गया है। इसके समाप्त होने के बाद इस वर्ष कुँवार का महीना दुहराया जाएगा तब उसके बाद कार्तिक का महीना आएगा। दो कुँवार होने के कारण वर्तमान वर्ष अर्थात विक्रम संवत् 2077...

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हम दुनिया के लोग

समाज में जाति और धर्म के आधार पर मनुष्यों के विभाजन की परंपरा पिछले 2 हज़ार वर्षों में ही निर्मित और प्रचलित हुई है। हम में से किसी के लिए भी निश्चयपूर्वक और प्रमाण सहित यह बता पाना मुश्किल है कि आज से...

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प्राचीन संस्कृत साहित्य के उद्धारक

भारत के प्राचीन धार्मिक और अन्य साहित्य का दूसरी सभ्यताओं की तुलना में विशाल भंडार है  किंतु यह साहित्य दो सौ साल पहले तक आम भारतीय के लिए उपलब्ध नहीं था । इसके कुछ कारण हैं, पहला, यह सारा साहित्य...

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देवता

आदमी को आदमी-सा फिर बना दे देवता,काल का पहिया ज़रा उल्टा घुमा दे देवता।लोग सदियों से तुम्हारे नाम पर हैं लड़ रहे,अक़्ल के दो दाँत उनके फिर उगा दे देवता।हर जगह मौज़ूद पर सुनते कहाँ हो इसलिए,लिख रखी है...

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शीत : सात छवियाँ

धूप गरीबी झेलती, बढ़ा ताप का भाव,ठिठुर रहा आकाश है,ढूँढ़े सूर्य अलाव ।रात रो रही रात भर, अपनी आंखें मूँद,पीर सहेजा फूल ने, बूँद-बूँद फिर बूँद ।सूरज हमने क्या किया, क्यों करता परिहास,धुआँ-धुआँ सी...

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सच के झरोखे से - विमोचन

 मेरी दूसरी पुस्तक ‘सच के झरोखे से ’ का विमोचन ‘कोईभीकृतिकारअमरनहींहोताकिन्तुउसकीकोईअमरहोजातीहै।‘यहविचारव्यक्तकियाविद्वानभाषाविदडॉ....

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शिक्षा, धार्मिकता और मानव-विकास

  मनुष्य ने पिछली कुछ सदियों में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व विस्तार किया है । ज्ञान के इस विस्तार ने बहुत सी पारंपरिक मान्यताओं को बदला है जिन्हें मनुष्य हजारों वर्षों तक ज्ञान समझता रहा...

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छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का सामाजिक संदर्भ

 लोकसंस्कृति को जानने-समझने का प्रमुख जरिया लोकसाहित्य  है। लोकसाहित्य का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितनी कि मानवजाति। लोक मानस की अभिव्यक्ति का एक माध्यम वह गेय रचना-साहित्य है जिसमें लोक जीवन के...

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प्राचीन संस्कृत साहित्य में होली

                     होली की मान्यता लोकपर्व के रूप में अधिक है किन्तु प्राचीन संस्कृत-शास्त्रों में इस पर्व का विपुल उल्लेख मिलता है । भविष्य पुराण में तो होली को शास्त्रीय उत्सव कहा गया है । ऋतुराज...

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जिज्ञासा और तर्क - मनुष्य के धर्म

 मनुष्य और अन्य प्राणियों में महत्पूर्ण अंतर यह है कि मनुष्य में सोचने, तर्क करने और विकसित भाषा का प्रयोग करने की क्षमता होती है । शेष कार्य तो सभी प्राणी न्यूनाधिक रूप से करते ही हैं । उक्त विशेष...

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तानाशाहों की मानसिक प्रवृत्तियाँ

19 वीं शताब्दी तक दुनिया के अधिकांश देशों में राजतंत्र था तब राज्य के प्रमुख शासक को राजा, सम्राट आदि कहा जाता था । अपनी असीमित शक्तियों का प्रयोग करने वाले इनमें से कुछ राजा निरंकुश और अत्याचारी भी...

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धर्म से दूर होती नैतिकता

 अलग-अलग संस्कृति में धर्म का अर्थ अलग-अलग होना  संभव है । इसी प्रकार नैतिकता के अर्थ में भी किंचित भिन्नता हो सकती है । किंतु सभी संस्कृतियों में धर्म का सामान्यीकृत अर्थ 'ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास'है...

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हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत - परंपरा और प्रयोग

 शास्त्रीय संगीत कई सदियों से भारत की संस्कृति का हिस्सा रहा है और आज भी है। सामगायन से प्रारंभ हुई यह परंपरा भारत की सांस्कृतिक एकता का सबसे महत्वपूर्ण घटक है । विशेष रूप से हिंदुस्तानी संगीत तो अब...

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विदेशी साज पर देशी राग

 भारतीय शास्त्रीय संगीत की दोनों पद्धतियों, हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत में एकल वाद्य-वादन का उतना ही महत्वपूर्ण स्थान है जितना एकल गायन का । सदियों पहले शास्त्रीय संगीत में वाद्यों की संख्या सीमित थी...

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सत्य हुआ असमर्थ

                              जंगल तरसे पेड़ को, नदिया तरसे नीर,सूरज सहमा देख कर, धरती की यह पीर ।मृत-सी है संवेदना, निर्ममता है शेष,मानव ही करता रहा, मानवता से द्वेष ।अर्थपिपासा ने किया, नष्ट धर्म का...

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सूर्य से दीये तक - अग्नि की वैश्विक यात्रा

 दीप कैसा हो कहीं हो, सूर्य का अवतार है यहजल गया है दीप तो अँधियार ढल कर ही रहेगादीप के लिए अभिव्यक्त कवि नीरज की इन सरल-सहज पंक्तियों में हमारी गौरवमयी वैश्विक संस्कृति के अनेक आयामों की  अभिव्यंजना...

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प्रकृति भली जग की जननी है

         (किशोरों के लिए गीत ) प्रकृति भली, जग की जननी है ।सब प्राणी को देती जीवन यह रचती नदिया-पर्वत-वन,भाँति -भाँति के अन्न-फूल-फल न्योछावर करती है हर पल,  सोच, दया करती कितनी है, प्रकृति भली, जग की...

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आवश्यक है वैज्ञानिक समझ विकसित करना

पिछले दिनों गोवा की राजधानी पणजी में सातवाँ ‘भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव’ संपन्न हुआ । सन् 2015 से प्रारंभ हुए इस महत्वपूर्ण आयोजन का एक उद्देश्य युवाओं में वैज्ञानिक समझ की प्रवृत्ति को...

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