Quantcast
Channel: शाश्वत शिल्प
Viewing all articles
Browse latest Browse all 142

बाँसुरी हो गई

$
0
0



इल्म की चाह ही बंदगी हो गई,
अक्षरों की छुअन आरती हो गई ।

सामना भी हुआ तो दुआ न सलाम,
अजनबी की तरह ज़िंदगी हो गई ।

प्यास ही प्यास है रेत ही रेत भी,
उम्र की शाम सूखी नदी हो गई ।

चुप रहूँ तो कहें बोलते क्यों नहीं,
बदज़ुबानी ज़रा आह की हो गई ।

खोखली है मगर छेड़ती सुर मधुर,
ज़िंदगी भी गज़ब बाँसुरी हो गई ।

 
-महेन्द्र वर्मा   

Viewing all articles
Browse latest Browse all 142

Trending Articles