Quantcast
Channel: शाश्वत शिल्प
Viewing all articles
Browse latest Browse all 142

उसके हृदय में पीर है सारे जहान की

$
0
0
नीरज - श्रद्धांजलि

 विनम्र श्रद्धांजलि
4 जनवरी, 1925 - 19 जुलाई, 2018


हिंदी के श्रेष्ठ कवियों के स्वर्णयुग का अंतिम सूरज अस्त हो गया ।

सर्वप्रिय गीतकार नीरज ने ग़ज़लें भी कहीं । उनके समय के हिंदी के बहुत से प्रतिष्ठित कवियों ने ग़ज़लें लिखीं । नीरज ने अपनी इस तरह की रचनाओं को ग़ज़ल न कहकर ‘गीतिका’ की संज्ञा दी यद्यपि वे उर्दू की परंपरागत शैली से भिन्न नहीं थीं। ग़ज़लों का उनका संग्रह भी ‘नीरज की गीतिकाएं’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ ।

वे जन-सरोकार के कवि थे । उनकी कुछ चुनी हुई ग़ज़लें प्रस्तुत हैं जिनमें समय के हस्ताक्षर की स्याही आज भी नहीं सूख पाई है, जैसे आज ही लिखी गई हों ।


1.
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए

जिस की ख़ुश्बू से महक जाए पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सम्त खिलाया जाए

आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जा के नहाया जाए

प्यार का ख़ून हुआ क्यूँ ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझ से भी न खाया जाए

जिस्म दो हो के भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरे आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए

गीत उन्मन है ग़ज़ल चुप है रुबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ’नीरज’ को बुलाया जाए
2.
ख़ुशबू-सी आ रही है इधर जाफ़रान की
खिड़की खुली हुई है उनके मकान की

हारे हुए परिंदे ज़रा उड़ के देख तो
आ जाएगी ज़मीन पे छत आसमान की

बुझ जाए शरे-शाम ही जैसे कोई चिराग़
कुछ यों है शुरुआत मेरी दास्तान की

ज्यों लूट ले कहार ही दुलहिन की पालकी
हालत यही है आजकल हिंदोस्तान की

औरों के घर की धूप उसे क्यों पसंद हो
बेची हो जिसने रोशनी अपने मकान की

ज़ुल्फ़ों के पेंचो-ख़म में उसे मत तलाशिए
ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की

नीरज से बढ़ के और धनी कौन है यहां
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की

3.
 

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा

ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा

मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़़््मी
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा

बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा

ज़बाँ है और बयाँ और उस का मतलब और
अजीब आज की दुनिया का व्याकरन देखा

लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे
उन्होंने आज जो संतों का आचरन देखा

जो सादगी है कुहन में हमारे ऐ ’नीरज’
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा


4.
 

है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए

रोज़ जो चेहरे बदलते हैं लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उन का निकलना चाहिए

अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए

फूल बन कर जो जिया है वो यहाँ मसला गया
ज़ीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए

छीनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए

दिल जवाँ सपने जवाँ मौसम जवाँ शब भी जवाँ
तुझ को मुझ से इस समय सूने में मिलना चाहिए

 

5.
 

जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा

जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा

उस से मिलना नामुम्किन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा

हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा

जब तक मंदिर और मस्जिद हैं
मुश्किल में इंसान रहेगा

’नीरज’ तू कल यहाँ न होगा
उस का गीत विधान रहेगा




Viewing all articles
Browse latest Browse all 142

Trending Articles