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Channel: शाश्वत शिल्प
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शब्द रे शब्द, तेरा अर्थ कैसा

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‘मेरे कहने का ये आशय नहीं था, आप गलत समझ रहे हैं।‘
यह एक ऐसा वाक्य है जिसका प्रयोग बातचीत के दौरान हर किसी को करने की जरूरत पड़ ही जाती है।
क्यों जरूरी हो जाता है ऐसा कहना ?

उत्तर स्पष्ट है-बोलने वाले ने अपना विचार व्यक्त करने के लिए शब्दों का प्रयोग जिन अर्थों में किया, सुनने वाले ने उन शब्दों को भिन्न अर्थों में सुना और समझा।

किसी शब्द का अर्थ बोलने और सुनने वाले के लिए भिन्न-भिन्न क्यों हो जाता है ?
दरअसल, शब्दों के अर्थ 3 बिंदुओं पर निर्भर होते हैं-
1.    संदर्भ
2.    मनःस्थिति
3.    अर्थबोध क्षमता

बोलने वाला  अपनी बात एक विशिष्ट संदर्भ में कहता है। आवश्यक नहीं कि सुनने वाला ठीक उसी संदर्भ में अर्थ ग्रहण करे। वह एक अलग संदर्भ की रचना कर लेता है।

मनःस्थिति और मनोभाव शब्दों के लिए एक विशिष्ट अर्थ का निर्माण करते हैं। बोलने और सुनने वाले की मनःस्थिति और मनोभावों में अंतर होना स्वाभाविक है।

शब्दों के अर्थबोध की क्षमता अध्ययन, अनुभव और बुद्धि पर निर्भर होती है। जाहिर है, ये तीनों विशेषताएं बोलने और सुनने वाले में अलग-अलग होंगी।

तो, क्या शब्दों के निश्चित अर्थ नहीं होते ?
गणित के प्रतीकों के अर्थ निश्चित होते हैं। ऐसे निश्चित अर्थ भाषाई शब्दों के नहीं हो सकते।

अर्थ परिवर्तन की यह स्थिति केवल वाचिक संवाद में ही नहीं बल्कि लिखित और पठित शब्दों के साथ भी उत्पन्न होती है।

जीवन में सुख और दुख देने वाले अनेक कारणों में से एक ‘शब्द‘ भी है।

शब्दों के इस छली स्वभाव को आपने भी महसूस किया होगा !

                                                                                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

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