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Channel: शाश्वत शिल्प
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हँसी बहुत अनमोल

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कर प्रयत्न राखें सभी, मन को सदा प्रसन्न,
जो उदास रहते वही, सबसे अधिक विपन्न।

गहन निराशा मौत से, अधिक है ख़तरनाक,
धीरे-धीरे जि़ंदगी, कर देती है ख़ाक।

वाद-विवाद न कीजिए, कबहूँ मूरख संग,
सुनने वाला ये कहे, दोनों के इक ढंग।

जो जलते हैं अन्य से, अपना करते घात,
अपने मन को भूनकर, खुद ही खाए जात।

उन्नति चाहें आप तो, रखें न इनको रंच,
ईष्र्या-कटुता-द्वेष-भय, निंदा-नींद-प्रपंच।

नहिं महत्व कोई मनुज, मरता है किस भाँति,
पर महत्व की बात यह, जीया है किस भाँति।

हँसी बहुत अनमोल पर, मिल जाती बेमोल,
देती दिल की गाँठ को, आसानी से खोल।
                                                                                    -महेन्द्र वर्मा


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